
नीलंबुर में राजनीति का बड़ा उलटफेर
केरल की नीलंबुर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने शानदार जीत दर्ज करते हुए सभी राजनीतिक समीकरणों को हिला दिया। यह चुनाव केवल एक सीट का नहीं, बल्कि पूरे राज्य की राजनीति का भविष्य तय करने वाला माना जा रहा है।
चुनाव कब और क्यों हुआ?
नीलंबुर में यह उपचुनाव तब जरूरी हुआ जब पूर्व विधायक पी.वी. अंवर ने जनवरी 2025 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफे के बाद यह सीट खाली हो गई थी, जिसे भरने के लिए 19 जून 2025 को मतदान कराया गया और 23 जून को परिणाम घोषित किए गए।
कौन-कौन थे मैदान में?
इस चुनाव में कई दिग्गज नेताओं ने अपनी किस्मत आज़माई:
आर्यादन शौकत – कांग्रेस उम्मीदवार, लोकप्रिय नेता और पूर्व मंत्री आर्यादन मोहम्मद के बेटे।
एम. स्वराज – CPI(M) के कद्दावर नेता और वाम मोर्चा (LDF) के प्रत्याशी।
पी.वी. अंवर – पूर्व विधायक, इस बार निर्दलीय के रूप में चुनावी मैदान में।
मोहन जॉर्ज – भारतीय जनता पार्टी (BJP) के उम्मीदवार।
नीलंबुर उपचुनाव का पूरा परिणाम
उम्मीदवार पार्टी प्राप्त वोट स्थित मार्जिन
आर्यादन शौकत कांग्रेस (UDF) 77,737 विजेता +11,077 वोट
एम. स्वराज CPI(M) (LDF) 66,660 दूसरे स्थान पर -11,077 वोट
पी.वी. अंवर निर्दलीय 19,760 तीसरे स्थान पर -57,977 वोट
मोहन जॉर्ज भाजपा (NDA) 8,562 चौथे स्थान पर -69,175 वोट
मतदान प्रतिशत: 75.9% ,पोस्टल बैलट वोट: 1,402
क्यों खास है यह जीत?
कांग्रेस के लिए यह सीट जीतना केवल एक चुनाव नहीं, बल्कि राज्य में अपनी मजबूत वापसी का संकेत है।
वाम मोर्चा (LDF) को इस हार से बड़ा झटका लगा है, जो राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन है।
पी.वी. अंवर ने निर्दलीय के तौर पर दमदार प्रदर्शन कर यह जता दिया कि उनके पास अभी भी नीलंबुर में अच्छा जनाधार है।
भाजपा इस सीट पर अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर सकी।
आर्यादन शौकत: कौन हैं ये?
आर्यादन शौकत नीलंबुर के बेहद लोकप्रिय नेता हैं।
वह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री आर्यादन मोहम्मद के पुत्र हैं।
राजनीति में सक्रिय रहने के साथ-साथ वह फिल्म निर्माता और सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं।
नीलंबुर में उनका पारिवारिक और सामाजिक प्रभाव बेहद मजबूत माना जाता है।
आगे क्या असर पड़ेगा?
नीलंबुर उपचुनाव का यह परिणाम 2026 में होने वाले केरल विधानसभा चुनावों पर सीधा असर डालेगा। कांग्रेस की यह जीत उसके कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा भरने का काम करेगी, वहीं LDF को अपनी रणनीति पर फिर से सोचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
आपका क्या विचार है?
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